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मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जी की जीवनी।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद पूरा नाम "अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन" एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान थे। वे कवि, लेखक, पत्रकार के साथ एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जी की जीवनी।

निजी जीवन: मौलाना अबुल कलाम जी का जन्म सऊदी अरब के मक्का शहर में हुआ था, 
उनका ताल्लुक अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से है जो बाबर के समय हेरात से भारत आ गए थे। उनकी माता जी एक अरबी थीं और उनके पिता जी मोहम्मद खैरुद्दीन एक फारसी (ईरानी, नृजातीया) थे। 
उनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन पूरे उनके परिवार के साथ पहले भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के समय 1857 में कलकत्ता छोड़ कर मक्का चले गए थे। वहाँ पर मोहम्मद खॅरूद्दीन की मुलाकात अपनी होने वाली पत्नी से हुई। इन सबके बाद मोहम्मद खैरूद्दीन 1890 में भारत लौट आए थे। मौहम्मद खैरूद्दीन को कलकत्ता में एक मुस्लिम मौलाना विद्वान के रूप में शोहरत मिली। जब  अबुल कलाम आज़ाद सिर्फ 11 साल के थे तब उनकी माता जी का देहांत हो गया था। उनकी आरंभिक शिक्षा इस्लामी तौर तरीकों से हुई थी। घर पर या मस्ज़िद में उन्हें उनके पिता तथा बाद में अन्य विद्वानों ने हो पढ़ाया था। इस्लामी शिक्षा के अलावा उन्हें इतिहास तथा गणित की शिक्षा भी अन्य मौलानाओं से ही मिली थी। आज़ाद ने उर्दू, फ़ारसी, हिन्दी, अरबी तथा अंग्रेजी़ भाषाएं सीखी थीं। उन्होंने कभी किसी विद्यालय/विश्वविद्यालय में दाखिला नहीं लिया था।
उन्होने जो कुछ भी पढ़ा और सीखा, सब कुछ मस्जिद, मदरसा से ही सीखा। और इस प्रकार वो अच्छी तालीम हासिल कर पाए। इस्लामी तालीम के इलावा वोह आधुनिक शिक्षावादी "सर सैय्यद अहमद खाँ" के विचारों से भी सहमत थे, और उनके विचारों को अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करते रहे थे।

विवाह: मात्र तेरह साल की आयु में उनका विवाह हो गया था उनकी पत्नी का नाम ज़ुलैखा बेग़म था। 

क्रांतिकारी और पत्रकार के रूप में उनका जीवन: अबुल कलाम आज़ाद अंग्रेजी हुकूमत के बहोत खिलाफ़ थे। वो हर समय हर हाल में अंग्रेजी सरकार को आम भारतीयों के शोषण के लिए जिम्मेवार ठहराया करते थे। उन्होंने न केवल अंग्रेज़ों बल्कि अपने समय के मुस्लिम नेताओं की भी आलोचना की और उनका खुल कर विरोध किया जो देश के हित के समक्ष साम्प्रदायिक हित को तरज़ीह दे रहे थे। अन्य मुस्लिम नेताओं से अलग जा कर उन्होने साल 1905 में बंगाल के विभाजन का भी खुल कर विरोध किया और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अलगाववादी विचारधारा को पूरी तरह खारिज़ कर दिया था। अबुल कलाम आज़ाद ने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया और उन्हें "श्री अरबिन्दो" और "श्यामसुन्हर चक्रवर्ती"  जैसे महान क्रांतिकारियों से भरपूर समर्थन भी मिला। राजनीति के प्रति उनके झुकाव ने और क्रांतिकारी सोच ने उन्हें पत्रकार बना दिया। उन्होने साल 1912 में एक उर्दू पत्रिका "अल हिलाल" की शुरूआत की। उनका मकसद साफ था, वो मुसलमान युवकों को क्रांतिकारी आन्दोलनों के प्रति उत्साहित करना चाहते थे और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देना चाहते थे, अपने इस मकसद में वो कामयाब भी हुए, और मुसलमानो के बड़े हिस्से ने आंदोलनों में हिस्सा लेना, और गैर मुस्लिमों से मतभेद खत्म करना शुरू कर दिया। उन्होने कांग्रेसी नेताओं का विश्वास बंगाल, बिहार के साथ बंबई (मुंबई) में क्रांतिकारी गतिविधियों के गुप्त आयोजनों द्वारा जीत लिया था। उन्हें साल 1920 में राँची के एक जेल में सजा भुगतनी पड़ी थी।
असहयोग आन्दोलन: जेल से निकलने के बाद अबुल कलाम आज़ाद जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोधी नेताओं में से एक थे। गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया था।

असहयोग आन्दोलन क्या है ?
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जी की जीवनी, jivni.in
असहयोग आंदोलन के समय महात्मा गांधी जी सभा को संबोधित करते हुए 

इस आन्दोलन का मकसद भारत के कोने कोने में अंग्रेज़ों का बहिष्कार करना था, हर वर्ग के लोग अपने अपने कार्यों का त्याग कर अंग्रेज़ो को भारत छोड़ने और आज़ादी देने का प्रस्ताव दे रहे थे, भारत का जो भी वेयक्ति जिस प्रकार से भी अंग्रेज़ी सरकार के अधीन कार्य करता था सभी ने अपना काम बंद कर दिया था, यह तक की बच्चों ने स्कूल जाना भी छोड़ दिया था, इस आंदोलन से अंग्रेज़ी सरकार बुरी तरह घबरा गई थी, क्यों की अंग्रेज़ों का सारा काम काज ठप होने लगा था। अबुल कलाम आज़ाद, महात्मा गांधी के सिद्धांतो का हर हाल में समर्थन करते थे। गांधी जी के साथ उन्होंने खिलाफत आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

• खिलाफ़त आंदोलन क्या है?
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जी की जीवनी, jivni.inखिलाफत आंदोलन के समय ली गई ऐतिहासिक तसवीर 

तुर्की के उस्मानी साम्राज्य की प्रथम विश्वयुद्ध में हारने पर उनपर लगाए गए हर्जाने का विरोध करना ही आसान शब्दों में खिलाफत आन्दोलन है। उस समय ऑटोमन (उस्मानी तुर्क) मक्का पर काबिज़ थे और इस्लाम के खलीफ़ा वही थे। इसके कारण पूरी दुनिया के मुसलमानो में गुस्सा था और भारत में यह खिलाफ़त आंन्दोलन के रूप में उभर कर सामने आया जिसमें उस्मानों को हराने वाले देशों (ब्रिटेन, फ्रांस, इटली) के साम्राज्य का भरपूर विरोध हुआ था।

• 1923 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के प्रेसीडेंट बन गए थे, और 1940 और 1945 के बीच कांग्रेस के प्रेसीडेंट रह चुके हैं । 
इसी दौरान भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ था। अंग्रेज़ों द्वारा कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं के साथ उन्हें भी तीन दिन जेल में बिताने पड़े थे। 

• सम्पूर्ण भारत की आज़ादी के बाद: साल 1952 के संसदीय चुनावों में वे उत्तर प्रदेश की रामपुर संसदीय सीट से उसके बाद 1957 के संसदीय चुनावों में हरियाणा की गुड़गांव संसदीय सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में सांसद चुने गए थे। वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्होंने ग्यारह वर्षों तक राष्ट्र की शिक्षा नीति का मार्गदर्शन करते हुए अपनी जिम्मेदारियों को बखूभी निभाया । मौलाना आज़ाद को ही 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान' "(I.I.T)" और 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' की स्थापना का श्रेय जाता है। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए महत्त्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना की थी। जो इस प्रकार हैं।
1) संगीत नाटक अकादमी (1953)
2) साहित्य अकादमी (1954)
3) ललितकला अकादमी (1954)

• अबुल कलाम आज़ाद जी ने केंद्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने पर सरकार से केंद्र और राज्यों दोनों के विश्वविद्यालयों में ही भारत के हर नागरिक को शिक्षा प्राप्ति के अधिकार का प्रस्ताव दिया था।
 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क (Free Education) और अनिवार्य (Compulsory) शिक्षा, कन्याओं की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की भरपूर वकालत की थी।

पुरस्कार: अबुल कलाम आजाद को वर्ष 1992 में मरणोपरान्त देश के सबसे बड़े पुरुष्कार "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया है। भारत रत्न सम्मान उन लोगों को दिया जाता है जो देशहित में अपना जीवन गुज़ारते हैं, या जिन के जीवन से देश का मान सम्मान बढ़ता है।

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